संकेत

Thursday, October 13, 2011

संकेत एक : प्रवेशांक

रजत कृष्ण की कविताओं पर केन्द्रित अंक
अक्टूबर २००८
अपनी बात
हिंदी के वरिष्ठ लेखक लक्ष्मीधर मालवीय ने आज की हिंदी कविता पर एक टिप्पड़ी करते हुए लिखा की उन्होंने जापान में अपने एक हिंदी भाषी शिष्य को हिंदी कविता की किताब पढने को दी. उस किताब को पढ़कर शिष्य ने कहा --"ये कवी कहना क्या चाहता है, मेरी समझ में नहीं आया!"
आगे उनका कहना है की लेखकों और प्रकाशको को चाहिए की वे एक जांच कमीशन बैठाएं. यह कमीशन जांच करे की ऐसी क्या वजह है की हिंदी कविता इस हिंदी भाषी शिष्य की समझ में नहीं आई.
क्या कवितायेँ एक कवि से दुसरे कवि के बीच का 'कूट संकेत' ban gai है ?
आज की हिंदी कविता के बारे में अक्सर लोग नाक-भौं चढ़ाकर एक सुर में बोल उठते हैं की ये बहुत दुरूह और अटपटी होती हैं. इनमे लयात्मकता तो होती ही नहीं. मैं ऐसे तार्किकों से कहना चाहूँगा क जो चीज़ गई जाए वह कविता हो, ये जुरुरी नहीं है. हाँ ये ज़ुरूर है की कवितायेँ अपने विन्यास में और बोध गम्यता में कठिन अवश्य हुई हैं, लेकिन इस कठिन समय की दुरुहता ही तो नै कविता की ताक़त है.

Tuesday, October 11, 2011

कविता केन्द्रित लघुपत्रिका संकेत

संकेत हिंदी की कविता केन्द्रित लघुपत्रिका है
अब तक संकेत के आठ अंक प्रकाशित हुए हैं
संकेत 36 पृष्ठ की पत्रिका है.
इसका एक प्रति का मूल्य १५ रुपये है
विशेष सहयोग राशि एक सौ रुपये है और आजीवन सहयोग राशि पांच सौ रुपये है
संरक्षक : दलजीत सिंह कालरा
संपादक : अनवर सुहैल
कला : के रवीन्द्र


संपर्क : संपादक : अनवर सुहैल
type IV/3, officer's colony
PO Bijuri Dist Anuppur MP 484440
9907978108

अक्टूबर २००८ में संकेत का प्रवेशांक प्रकाशित हुआ. ये अंक रजत कृष्ण की कविताओं पर केन्द्रित था. अंक ३२ पृष्ठ का था और पाठको द्वारा सराहा गया. संकेत की टीम में कला सम्पादक के रूप में प्रतिष्ठित कलाकार श्री के रविन्द्र जुड़े और ७३ वर्ष के साथी श्री उमा शंकर तिवारी अवकाश प्राप्त डी आई जी झांसी हमारे शुभचिंतक बने. और इस तरह कारवां बनता गया.

रजत की एक कविता प्रस्तुत है...संकेत एक से :
स्त्री
यहाँ
अस्पताल में
बेटी भी
माँ हो जाती है
माँ हो जाती है
पत्नी भी
यहाँ अस्पताल में
जाग जाती है
आदमी के भीतर की स्त्री